Independence Day 2024 Speech in Hindi : मेरे प्यारे साथियों सभी को स्वतंत्र भारत के इस आजादी के पर्व की बहुत-बहुत बधाइयां, मैं अपने विचारों को शुरू करता हूं।1931 के मार्च की उस एक रात की बात के साथ जब मात्र 23 साल का एक जवान स्वतंत्रता सेनानी जिसको अंग्रेज पकड़कर जेल ले जाते हैं, और उस स्वतंत्रता सेनानी को मौत की सजा सुना देते हैं। कुसूर केवल इतना था कि भारत को आजाद करवाना था, और अंग्रेज भारत को कभी भी आजाद होता हुआ नहीं देखना चाहते थे। जब इस 23 साल के नव युवक स्वतंत्रता सेनानी को आजादी के लिए अपने देश के लिए लड़ने के जुर्म में अंग्रेज फांसी की सजा सुना देते हैं तो फांसी के कुछ समय पहले इस युवक की मां मिलने के लिए जेल में आती है।
मार्च 1931 की वो काली रात उस रात का चारों ओर का अंधेरा जरूरत से कुछ ज्यादा ही गहरा काला था। और उस रात में रोज की तुलना में बहुत ज्यादा सन्नाटा था, लेकिन इस सन्नाटे के बीच जेल के भीतर एक कोने में एक मां और उसके बेटे के बीच वो आखिरी बातचीत हो रही थी। वो आखिरी मुलाकात हो रही थी, जो हिंदुस्तान के आने वाले दिनों में एक तूफान लाने वाली थी। और यह बातचीत सिर्फ शब्दों का आदान प्रदान नहीं था बल्कि एक मां की ममता और साहस और एक जवान बेटे के
बलिदान के संकल्प की कहानी थी। मां की आंखों में आंसू थे लेकिन उनका हृदय अपने बेटे के साहस पर पर गर्व कर रहा था ।
जेलर ने मां को अंदर बुलाया। और उन्हें उस कोठरी की तरफ लेकर के गया जहां पर इस नव युवक को रखा गया था। ये नव युवक अपनी माता जी को देख कर के अपनी जगह खड़ा हो जाता है। इस नव युवक क्रांतिकारी के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आई अपनी मां को देख कर के जिससे उनकी मां के दिल को थोड़ा सा सुकून मिलता है।
मां को पता है कि बेटे को फांसी होना निश्चित है, और बेटे को भी यह पता है कि मां को यह पता है कि मुझे फांसी होना निश्चित है वो युवक मुस्कुराते हुए बोलता है कि मां आप आई मुझे पता था आप आएंगी मां ने आंसू भरी आंखों से बेटे को कहा कि बेटा तुम्हारे बिना यह दुनिया कैसी होगी? मैं तुम्हें हर पल याद करूंगी वो नवयुवक स्वतंत्रता सेनानी अपनी मां के पास बैठ जाते हैं, और उनके हाथों को अपने हाथों में थाम लेते हैं, और कहते हैं कि मां मुझे पता है कि मेरा यह निर्णय आपके लिए कितना कठिन है।
लेकिन मैंने हमेशा देश के लिए जीने और मरने की कसम खाई है, आज वही दिन है मां अपने आंसू पोछ्ते हुए बोलती है, कि बेटा कोई भी मां-बाप अपने बेटे को अपने सामने खोता हुआ नहीं देखना चाहते पर तुम्हारा उद्देश्य बहुत बड़ा है, मुझे तुम पर गर्व है। तुमने जो किया ना वो बहुत कम लोग कर पाते हैं, लेकिन एक मां का दिल अपने बेटे के बिना कैसा रहेगा? मैं तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारी यादों को तो जिंदा रख लूंगी, पर क्योंकि एक मां के लिए उसका बेटा ही सब कुछ है कैसे मैं इन हाथों से तेरे शरीर को उठाऊंगी।
जिन हाथों से मैंने बालपन में तुझे खाना खिलाया था, दोनों कुछ पल के लिए खामोश हो जाते और फिर वो नव युवक उस खामोशी को चीरते हुए कहता है। हां मां मैं जानता हूं कि आपके लिए बहुत कठिन है लेकिन याद रखें मेरी मृत्यु बेकार नहीं जाएगी मैं उन लाखों लोगों के लिए मर रहा हूं जो स्वतंत्रता की राह देख रहे हैं। मेरा बलिदान एक दिन इस देश को आजाद करेगा, और मुझे खोने की फिक्र मत करना मां क्योंकि अगर आज मैं एक भगत सिंह बलिदान दे दूंगा ना तो इस देश में हजारों भगत सिंह पैदा होंगे, लाखों भगत सिंह पैदा होंगे। जिनमें तेरे इस बेटे की छवि होगी इसलिए मां मेरा बलिदान बेकार नहीं जाएगा लिखने वाले ने क्या खूब लिखा है, कि शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, और वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशा होगा।
23 साल के भगत सिंह को हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ जाना मंजूर था, पर गुलामी में जीना इन्होंने कभी नहीं कबूल किया ऐसे कई नाम है इतिहास में सुखदेव, राजगुरु, मंगल पांडे, राम प्रसाद बिस्मिल, अफाक उला खान, ठाकुर रोशन सिंह बटुकेश्वर दत्त, महात्मा गांधी, सत्येंद्रनाथ बोस, सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, बाल गंगाधर तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले, नाम अगर मैं बोलता रहूंगा ना तो कई दिन निकल जाएंगे लेकिन नाम कभी खत्म नहीं होंगे।.
आज जिस आबोहवा में हम खुली सांस ले रहे हैं ना उसके लिए ना जाने कितने आजादी के दीवानों ने इसी आजादी के लिए लड़ते-लड़ते अपनी सांसें छोड़ी है उसकी कोई गिनती नहीं है। ये आजादी हमें दान में नहीं मिली है, बल्कि हमारे इस देश के कई वीरों ने अपना खून देकर के कवाई है, ये आजादी ये आजादी हमें विरासत में यूं ही नहीं मिली है, ना जाने ने कितनी मांओं का दामन सुना हुआ है। आजादी के आंदोलन का वो दौर था जब लोगों की मूलभूत जरूरत रोटी कपड़ा मकान नहीं हुआ करता था । बल्कि आजाद हिंदुस्तान में सांस लेना हुआ करता था।
चंद्रशेखर आजाद जिन्होंने आजीवन अंग्रेजों का गुलाम नहीं बनने का प्रण ले रखा था। अंग्रेजों की लड़ाई में जब यह लगा उनको कि गोलियां खत्म होने वाली है, तो आखिरी गोली को अपने सर से लगाना स्वीकार किया, लेकिन अंग्रेजों के सामने सरेंडर करना कभी स्वीकार नहीं किया। ये वो दौर था जिसमें लाला लजपतराय ने कहा था कि भले ही मेरे विश्व पर कितनी ही लाठियों की चोट पड़ जाए पर एक वक्त वो भी आएगा जब मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी अंग्रेजों के ताबूत में एक-एक किल का काम करेगी।
ये वो दौर था जिसमें सुभाष चंद्र बोस जैसे वो सेनानी थे जिनका यह कहना था कि अगर देश में स्वतंत्रता को जगाना है ना तो, हमें तो मरना ही होगा। और जिन्होंने यह भी कहा था कि तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा, ये वो दौर था जब रंग दे बसंती चोला गाते गाते राम प्रसाद बिस्मिल जैसे अपने साथियों के साथ मुस्कुराते हुए फांसी पर चढ़ जाया करते थे। चंद्रशेखर आजाद भी बलिदान से साबित कर गए कि हम आजाद ही है, और आजाद ही रहेंगे, और आजाद ही मरेंगे।
झांसी की रानी की लक्ष्मीबाई जिन्होंने अंग्रेजों की बंदूक का अपनी तलवार के साथ बखूबी से क्या सामना किया, और लड़ते-लड़ते अपनी शहादत को स्वीकार किया, ना कि गुलामी को। बिना हिंसा के भी लड़ाई की जा सकती है, ये हमें महात्मा गांधी जी ने सिखाया है। गांधी जी ने ये भी सिखाया है कि, या तो करो या फिर मरो या तो आज है या फिर कभी नहीं है ।
भगत सिंह जी ने भी कहा है कि लड़ाई बंदूक की गोलियों के दम पे नहीं बल्कि अपने अंदर के के साहस की बुनियाद पर जीती जाती है। सुभाष चंद्र बोस इन्होंने सिखाया है कि अगर हमें अपने राष्ट्र को जिंदा रखना है ना तो हमारे मन में एक ही इच्छा
होनी चाहिए और वो इच्छा होनी चाहिए बलिदान की।
आजादी के लिए लड़ी गई लड़ाई का ये वो दौर था जिसमें बच्चे बच्चे के हाथ में आजादी के बिगुल हुआ करते थे। आजादी से पहले घर-घर में बच्चों को सूखी रोटियों के साथ सिखाया जाता था सूखी रोटियों के साथ भरोसा जाता था आज हमें जरूरत है अपने देश के हर एक वर्ग को हर एक समाज को एक होने की। और अपने हिंदुस्तान को उस लेवल तक ले जाने की जहां पर उसका कुछ बिगाड़ पाना तो बहुत दूर उसको छूना भी बहुत मुश्किल हो।
आज के आजाद भारत में हम सबको अपनी-अपनी जिम्मेदारियां समझने की जरूरत है। अगर आप एक विद्यार्थी हैं तो आपकी जिम्मेदारी है कि आप ज्ञान को हासिल करें। और ज्ञान हासिल करके देश में एक बदलाव करें आप अगर एक डॉक्टर हैं तो गरीब से गरीब मरीज की भी मदद करें ।
आप जिस जगह पे हो जो काम कर रहे हो वहां पर एक पल के लिए भी रुक करके अपने आप से पूछिए कि क्या यह काम करने से हमारा देश एक और कदम आगे बढ़ सकता है। और फिर अगर उसका जवाब हां हो ना तो उसमें अपनी पूरी जीजन लगा दो हमें उस भारत का निर्माण करना है। जहां पर हर इंसान को समान अवसर मिले जहां कोई भी भूखा ना सोये। जहां हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार हो जहां हम अपनी उस संस्कृति को बरकरार रखें जो कई हजारों सालों से हमारे हिंदुस्तान में रही है।
श्री दुष्यंत कुमार की चंद पंक्तियों के साथ मैं आप सभी के अंदर देश प्रेम की और खुद के विकास की ज्वारा जला कर के अपने शब्दों को विराम देना चाहता हूं। कि हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए। आज यह दीवार पर्दों की तरह हिलने लगी, शर्त लेकिन थी कि यह बुनियाद हिलने चाहिए। हर सड़क पर हर गली में हर नगर और हर गांव में हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए, सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं सारी कोशिश है कि यह सूरत बदलनी चाहिए, मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए।
आजादी के पर्व पर विचारों को समय देने के लिए धन्यवाद वीरों की शहादत को याद रखिए आप जो कुछ भी कर रहे हैं ना उसमें पूरी जीजन झोक दीजिए और अपनी मेहनत के दम पर देश में अपना ही नहीं बल्किदुनिया में देश का नाम रोशन करके दिखाइए जय हिंद वंदे मातरम