Papankusha Ekadashi: ओम नमो भगवते वासुदेवाय। सबसे पहले, पापांकुशा एकादशी आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी होती है। इस एकादशी का महत्व स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था। इसके बाद, इस एकादशी पर भगवान पद्मनाथ की पूजा की जाती है। इसके अतिरिक्त, पाप रूपी हाथी को इस व्रत के पुण्य रूपी अंकुश से भेदने के कारण ही इसका नाम पापांकुशा पड़ा। इसके अलावा, इस दिन मौन रहकर भगवत स्मरण और पूजन करने का विधान है। इस प्रकार, भगवान की आराधना करने से मन शुद्ध होता है और व्यक्ति में सद्गुणों का समावेश होता है।
आज की तिथि पापांकुशा एकादशी व्रत का नियम पालन दशमी तिथि की रात से ही शुरू करना चाहिए, और इसके अलावा ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। इसके परिणामस्वरूप, एकादशी के दिन सुभ नित्य कर्मों से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहनकर भगवान श्री विष्णु की शेष शैया पर विराजित प्रतिमा के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लें। इसके अलावा, इस दिन अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार उपवास करें। हालांकि, उपवास में अन्न या चावल ग्रहण नहीं करना चाहिए। यदि, इसके बावजूद, बिना अन्न के ना रह पाएं, तो केवल एक समय ही फलाहार ग्रहण कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, पापांकुशा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की श्रद्धा और भक्ति भाव से पूजा करने के बाद, ब्राह्मणों को उत्तम दान और दक्षिणा देनी चाहिए। इस दिन केवल और केवल फलाहार ही किया जाता है। इसलिए, इससे शरीर स्वस्थ और हल्का रहता है।
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एकादशी का व्रत रखने से भगवान समस्त पापों को नष्ट कर देते हैं। अर्थात, पापा एकादशी पापों का नाश करने वाली कही गई है। इसके अतिरिक्त, जनहित कार्य निर्माण कार्य प्रारंभ करने के लिए या धार्मिक कार्य करने के लिए यह एक उत्तम मुहूर्त है। इस दिन, व्रत करने वाले को भूमि, गौ, जल, अन्न, छत्र, उपा आदि का दान करना चाहिए। यदि परिवार में कोई भी सदस्य पापांकुशा एकादशी का व्रत करता है, तो उस परिवार के मातृ पक्ष के 10 पितृ पक्ष के 10 पितर विष्णु लोक को जाते हैं। इसके अलावा, पापांकुशा एकादशी चा अश्वमेध यज्ञ और 100 सूर्य यज्ञ करने के समान फल प्रदान करने वाली मानी गई है।
दशमी तिथि पर, इसलिए, सप्तधान्य यानी गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर की दाल नहीं खानी चाहिए क्योंकि इन सप्त धान्यं की पूजा एकादशी के दिन की जाती है। जहां तक संभव हो, इसके अलावा, दशमी तिथि और एकादशी तिथि दोनों ही दिनों में कम से कम बोलना चाहिए; यदि हो सके तो मौन रहना चाहिए। इसके साथ ही, दशमी तिथि को तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए, जबकि एकादशी तिथि पर सुबह उठकर स्नानादि करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके लिए, संकल्प अपनी शक्ति के अनुसार ही लेना चाहिए, यानी एक समय फलाहार का या फिर बिना भोजन का संकल्प लेने के बाद, अंततः, घट स्थापना की जाती है, जिसके ऊपर श्री विष्णु भगवान की मूर्ति रखी जाती है। इसके साथ ही, भगवान विष्णु का स्मरण और कथा का श्रवण किया जाता है।
इस व्रत का समापन द्वादशी तिथि में प्रातःकाल ब्राह्मणों को अन्न का दान और दक्षिणा देने के बाद ही किया जाता है। वास्तव में, जो मनुष्य किसी प्रकार के पुण्य कर्म किए बिना जीवन के दिन व्यतीत करता है, वह लोहार की भट्टी की तरह सांस लेता हुआ निर्जीव के समान ही है। इसके अलावा, निर्धन मनुष्यों को भी अपनी शक्ति के अनुसार दान करना चाहिए। इसके विपरीत, धन वालों को सरोवर, बाग, मकान आदि बनवाकर दान करना चाहिए। इस प्रकार, ऐसे मनुष्य को यम का द्वार नहीं देखना पड़ता और संसार में दीर्घायु होकर वह धनाढ्य, कुलीन और रोग रहित रहते हैं।
इस बार ekadashi vrat october 2024 की तिथि दो दिन तक रहेगी। सबसे पहले, एकादशी तिथि प्रारंभ होगी 13 अक्टूबर रविवार को सुबह 9:1 से और इसके बाद 14 अक्टूबर सोमवार को सुबह 6:4 पर तिथि समाप्त होगी। इसलिए, इस बार 13 अक्टूबर को व्रत ना रखकर केवल 14 अक्टूबर सोमवार को ही पापांकुशा एकादशी का व्रत रहेगा। सभी वैष्णव जनों को या फिर गृहस्थ जनों को एकमात्र इसी दिन उपवास रखने की सलाह दी जाती है।
इसके अतिरिक्त, द्वादशी तिथि प्रारंभ होगी 14 अक्टूबर सोमवार सुबह 6:42 से और 15 अक्टूबर मंगलवार को सुबह 3:4 पर तिथि समाप्त होगी। इसके बाद, द्वादशी तिथि लगते ही जो हरिवा सर का समय शुरू होगा, वह सोमवार को दोपहर 12:30 बजे तक समाप्त होगा।
इसके अलावा, ऐसा एकादशी व्रत का नियम है कि जब तक हरिवा सर का समय रहता है, तब तक एकादशी का व्रत भूले से भी नहीं खोलना चाहिए। यानी कि हरिवा सर के समय व्रत पारणा नहीं करना चाहिए। यही कारण है कि सोमवार को हरिवा सर का समय दोपहर तक रहेगा। इसलिए, आप सोमवार को केवल व्रत रखें और 15 अक्टूबर मंगलवार को एकादशी व्रत पारणा का शुभ मुहूर्त सुबह 6:2 से 7:45 के बीच में रहेगा। अंततः, आपको इसी निर्धारित मुहूर्त के अंदर अपना एकादशी व्रत खोलना है।